सत्ता सिंहासन उस पक्षी की तरह है , जिसे बहेलिया शिकार के लिये सतत निर्मेष निहारा करता है, कि कब जद में आये और शिकार बने।
नाक , नमक , और निशान के खातिर सियासत दान किस हद तक गिर सकते हैं, इसका उदाहरण तो आये दिन रोजमर्रा की आम बातें हैं। ये अलग है कि न ही इनके पास नाक है और न ही नमक का मान है और न ही इनका कोई निशान है। इनको तो बस, अवसर की तलाश है अपने - अपने चेहरे चमकाने का...
उन्हें नगर सुधारने की चाहत है और उन्हें नगर ही सुधार देता है। वे नगर बदलना चाहते हैं और नगर ही उन्हें बदल देता है बड़ी विडम्बना है , सब नगर से परेशान है और इनसे परेशान नगर है।
मामला मुंगेली नगरपालिका का है जहाँ अध्यक्ष बर्खास्तगी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष बिठाया गया , पर नौ दिन चले अढ़ाई कोस को चरितार्थ करते अचानक शासन के कारिंदों ने अध्यक्ष का चुनाव घोषित कर दिया बेचारे कार्यकारी न कार्य के रह गये और न कारी के, सारा करा धरा मटियामेट हो गया। भला हो , कार्यकारी का तमगा तो छाती पर छप गया।
अब पते की बात तो ये है कि बिल्ली के भाग्य से कहीं छिंका नहीं टूटा तो क्या होगा, जिसकी संभावित संभावना पर बिना अकल लगाये कौआ के पीछे दौड़ गये। कहीं ऐसा न हो जाये " बिना बिचारे जो करे सो पीछे पछताये और यदि ऐसा हुआ तो मधुमक्खियाँ इतनी तेजी से आक्रोशित हो आक्रमण करेगी कि पानी में डूबने से भी ये बच नहीं पायेंगे।
अब एक अहम सवाल आप सबके विचार के लिये...................
संस्पेंशन पर संस्पेंस , पर्दे पर पर्दा
जिस आदेश के अनुसार अध्यक्ष सोनकर को बर्खास्त किया गया है , जिसमें सामूहिकीकरण के आधार पर बर्खास्तगी किया गया है तो फिर घपलेबाजी में शामिल नगरपालिका के अधिकारी, कर्मचारियों को क्यों बर्खास्त नहीं किया गया। दूसरा प्रश्न यह भी उठता है कि इन्हें संस्पेंड किया गया है तो इनकी उपस्थिति कहाँ है, किस कार्यालय में इन्हें संबंद्ध किया गया है , क्या इस कार्यालय में उपस्थिति है , यदि उपस्थित है तो पुलिस प्रशासन इन्हें फरार कैसे बता रही है और यदि ये फरार हैं जैसा शासन, पुलिस प्रशासन बता रहा है तो इन्हें उपस्थित से छूट किसके आदेश पर मिला है। क्या इन्हें नोटिस जारी किया गया या संपत्ति राजसात करने आदेश जारी किया गया है यदि नहीं तो यह स्पष्ट है कि शासन बदले की भावना से अध्यक्ष सोनकर को बर्खास्त किया है।
पार्षदों ने न ही व किसी संगठन दल के नेता ने अध्यक्ष के को्र्ट में सरेंडर के बाद न तो जो आरोपी बनायें गए नगर पालिका अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ गिरफ्तारी के लिए न कोई आवाज उठाई न ही ज्ञापन- ज्ञापन खेल- खेला , न ही चेतावनी ऊपर चेतावनी दी गई۔
इस बात से ही समझ आता है कि कुल मिलाकर नियत और नीति साफ-साफ दिख रहा۔
आज न ही संगठन के विचार धारा में कोई दल दिख रहा،नही तो पुराने व ईमानदार कार्यकर्ता कुर्सी पर काबिज होता۔पर जो भी आये पद पर बैठना आसान नही है प्यारे۔ जैसी करनी वैसी भरनी ، कभी पीछा नही छोड़ती۔
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